Thursday, October 17, 2013

जब Feeling Sick....



आज वो सारे लेखक कुछ ज्यादा याद आ रहे हैं जिनके उपन्यास मैं सर्दी -जुखाम होने पर रात भर पढ़ा करती थी ताकि वो मुझ पर हावी ना हों, आखिर किताबों की संगत होती ही इतनी निराली है की समय का पता ही न चले । ये आदत उन शरुआती दिनों में अपने भाई से लगी है, जब वो अपनी लाइब्रेरी की हर वो किताब सबसे पहले मुझे पढने दिया करता था ताकि मैं अपना मन बीमार होने की पीड़ा से अलग कर सकूँ । इन सब में पूरा फायदा मेरा था पहला की "मैं" अपनी निंद्रा रानी के प्रकोप से बहार आ जाती जो मेरी लाइफ में एक " खलनायक " की भूमिका निभाया करती थी और दूसरा नयी कहानी पढ़ लेती ,जिसकी इजाजत मुझे नहीं थी । "निंद्रा रानी और मेरा बचपन से छतीस का आंकड़ा रहा है । उनका प्रकोप ऐसा था की शाम के ६ बजे से ही मेरे मन के अन्दर वास कर लेती और हावी हो जाती थी । मैं उससे छुटकारा पाने के लिए कितने जतन किया करती, जैसे की दिन में खेलने कि बजाये सो जाना ,बार -बार अपनी आँखों पर पानी के छीटे मरना ,हर आधे घंटे पर दो मिनट के लिए "वाक" करना | पर वो तो बस मुझे छोड़ कर जाने का नाम ही नहीं लेती और मैं बड़ी मुस्किल से ८ बजने तक का इंतजार कर पाती | अक्सर ८ बजे पापा और मम्मी न्यूज़ देखा करते और में बड़े सोफे का कोना पकड़कर अपनी दुनिया में खो जाती ।


इन "निंद्रा रानी" की वजह से मैंने काफी खामियाजे भुगते हैं, एक तो अक्सर इनकी वजह से मुझे नींद में खिलाया जाता था| क्योंकी खाने के समय से पहले ही मैं अपनी दुनिया में रहती थी , दूसरा कभी-कभी लैंप के आगे पढते हुए इन्होने मेरे सुन्दर और प्यारे बालों को आग की चपेट में भी डाल दिया । जाने क्या दुश्मनी थी, मुझसे की शाम होते ही मुझे परेशान करना शरू हो जाती । इन सब से बचने के लिए मैंने इनसे कितनी मिन्नतें भी की पर ये कहा मानने वाली । आखिर थक हार कर मैंने जल्दी सोने और अहले सुबह उठने की योजना बनाई और मैं सफल रही वरना आज मेरे मार्कशीट पे इनकी कृपा से काफी लडू होते ।
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रिफ़रेंस इमेज: www.googleimage.com                                                   [अपनी कलम से ]

Tuesday, March 19, 2013

विलुप्त होता फगवा चौताल .....

                                         होली खेले रघुवीरा अवध में
होली खेले रघुवीरा अवध में

केकर हाथें ढोलक पर शोहे
केकर हाथें मंजीरा
अवध में
होली खेले रघुवीरा

रमा के हाथें ढोलक पर शोहे
लक्ष्मण हाथें मंजीरा
अवध में
होली खेले रघुवीरा..

होली खेले रघुवीरा अवध में
होली खेले रघुवीरा अवध में

किन्खा  के हाथें कनक पिचकारी
किन्खा के हाथें अबीरा
अवध में
होली खेले रघुवीरा

राम जी के हाथें कनक पिचकारी
सीता के हाथें अबीरा
अवध में
होली खेले रघुवीरा

होली खेले रघुवीरा अवध में
 होली खेले रघुवीरा अवध में |



रंगों का त्यौहार होली यानि फगवा । फागुन माह के अंत और चैत्र मास   की पहली तिथि को मनाया जाने वाला हिन्दुओं  का एक विशाल त्योहार जो हर साल हम बड़े ही हर्षो उल्लास से मानते हैं , मूलतः एक पौराणिक  घटना ( बालक प्रह्लाद ) पर आधारित है । बालक प्रह्लाद का अपने भगवान विष्णु में  विश्वास उसके आग से बचने का कारन  और होलिका का आग में भस्म होना ही इस त्यौहार की शुरुआत है । 

रंगों के इस रंगीले त्यौहार में गीत और नृत्य चार चाँद लगा देते हैं । फगवा गीत बहुत ही तेज और ऊँचे स्वर में  गाया  जाता है | उत्तर भारत के गावों में इसे एक विशेष शैली में गाते हैं जिसे हम "चौताल " कहते हैं।इसमें गाने वाले लोग दो पंक्तियों में विभक्त होकर एक दुसरे के आमने-  सामने ढोलक ,झाल ,और मृदंग बजाते हैं  ।  फगवा  जो चौताल  शैली में गाये जाते हैं उनमे ज्यादातर  राम - सीता ,राधा - कृष्ण  और शिव- पार्वती के होली खेलने के  गीत होते हैं । उत्तर भारत की ये महान कला अब  बहुत ही कम गावों में रची बसी है । 


  सदा अनंदा रहे ये द्वारे
मोहन खेले होली हो

एक बर खेले कुंअर कन्हेया  एक बर  राधा
होली हो

सदा अनंदा रहे ये द्वारे
मोहन खेले होली हो

भरत  पिचकारी कान्हा मारे
राधा के  भीगे चोली हो

सदा अनंदा रहे ये द्वारे
मोहन खेले होली हो |






रिफ़रेंस इमेज: www.googleimage.com                                                                  [अपनी कलम से ]