Tuesday, March 19, 2013

विलुप्त होता फगवा चौताल .....

                                         होली खेले रघुवीरा अवध में
होली खेले रघुवीरा अवध में

केकर हाथें ढोलक पर शोहे
केकर हाथें मंजीरा
अवध में
होली खेले रघुवीरा

रमा के हाथें ढोलक पर शोहे
लक्ष्मण हाथें मंजीरा
अवध में
होली खेले रघुवीरा..

होली खेले रघुवीरा अवध में
होली खेले रघुवीरा अवध में

किन्खा  के हाथें कनक पिचकारी
किन्खा के हाथें अबीरा
अवध में
होली खेले रघुवीरा

राम जी के हाथें कनक पिचकारी
सीता के हाथें अबीरा
अवध में
होली खेले रघुवीरा

होली खेले रघुवीरा अवध में
 होली खेले रघुवीरा अवध में |



रंगों का त्यौहार होली यानि फगवा । फागुन माह के अंत और चैत्र मास   की पहली तिथि को मनाया जाने वाला हिन्दुओं  का एक विशाल त्योहार जो हर साल हम बड़े ही हर्षो उल्लास से मानते हैं , मूलतः एक पौराणिक  घटना ( बालक प्रह्लाद ) पर आधारित है । बालक प्रह्लाद का अपने भगवान विष्णु में  विश्वास उसके आग से बचने का कारन  और होलिका का आग में भस्म होना ही इस त्यौहार की शुरुआत है । 

रंगों के इस रंगीले त्यौहार में गीत और नृत्य चार चाँद लगा देते हैं । फगवा गीत बहुत ही तेज और ऊँचे स्वर में  गाया  जाता है | उत्तर भारत के गावों में इसे एक विशेष शैली में गाते हैं जिसे हम "चौताल " कहते हैं।इसमें गाने वाले लोग दो पंक्तियों में विभक्त होकर एक दुसरे के आमने-  सामने ढोलक ,झाल ,और मृदंग बजाते हैं  ।  फगवा  जो चौताल  शैली में गाये जाते हैं उनमे ज्यादातर  राम - सीता ,राधा - कृष्ण  और शिव- पार्वती के होली खेलने के  गीत होते हैं । उत्तर भारत की ये महान कला अब  बहुत ही कम गावों में रची बसी है । 


  सदा अनंदा रहे ये द्वारे
मोहन खेले होली हो

एक बर खेले कुंअर कन्हेया  एक बर  राधा
होली हो

सदा अनंदा रहे ये द्वारे
मोहन खेले होली हो

भरत  पिचकारी कान्हा मारे
राधा के  भीगे चोली हो

सदा अनंदा रहे ये द्वारे
मोहन खेले होली हो |






रिफ़रेंस इमेज: www.googleimage.com                                                                  [अपनी कलम से ]

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