Saturday, October 27, 2012

पतझड़ के रंग


पतझड़ के रंग यानी " Fall color" जब से सुना था मन के अंदर सारे रंग जैसे तांडव कर रहे हो और कह रहे हो अब तो मेरे पास आजा।रंगों की दुनिया भी विचित्र है आँखों को चकाचोंध कर देने वाले रंग बहुत सुकून पहुचाते हैं और मन के अन्दर अनायास ही धुन बजती हे "बावरा मन देखने चला हे एक सपना "। यूँ तो "फॉल कलर" देखने का मेरा यह पहला मौका था अमेरिका में पर इन रंगों से जान पहचान पुरानी है , और शायद यही वजह थी की में आज सुबह से ही इनकी दुनिया में खोयी थी । 





पहली बार जब रंगों को अपने नन्हे हाथो से छुआ था , तभी से ये मेरे मन को भाते हैं । आज भी याद है पापा जी ने मुझे अपना पेंटिंग बॉक्स दिया था ,और मैं उसे बहुत ही कम उपयोग में लाती थी ,शायद इस डर से की कही खत्म न हो जाये । ड्राइंग का जहाँ तक सवाल है ,हम दोनों भाई बहन में , मै अव्वल थी और भैया के साथ हालत यह था की उसे परीक्षा में भी दूसरो की मदद लेनी पड़ती थी । वैसे रंग उसे भी उतने ही भाते हैं ,इसका पता इन दिनों उसके ख़रीदे जाने वाले कपड़ो से लगता है।  



हमारे इंडिया में तो फॉल (पतझड़ ) माने "चूल्हे का जलावन" ही माना  जाता है और गावों में तो लोग घुप अँधेरी रात में इसे पाने के लिए कूच कर जाते हैं ताकि उन्हें  सुबह की रोटी का आसरा मिले । परन्तु फिर भी रंगों से हमारा भारतवर्ष भरा है । 




इन दिनों यहाँ ( जर्सी सिटी ) हर पेड़ लाल ,पीले ,नारंगी और कुछ तो आधे पीले- आधे लाल रंगों की चादर ओढे खड़ा है ,पेड़ों की पत्तियों के ये रंग अदभूत दीखते हैं  । पतझर के ये रंग मन को बड़ा भाता हैं । इनको कैमरे में कैद कर पाना मुस्किल नहीं था, पर आज सुबह से ही दोस्तों के प्रोग्राम कैंसल करने से थोडा तो उथलपुथल हुआ ,पर फिर अकेले ही इन रंगों की सैर पर निकल पड़ी । बिल्डिंग के बाहर ही पतझर के पत्तों ने गरमजोशी से मेरा स्वागत किया और में बढती चली गयी, हाथों की उंगलियाँ कैमरे से हटी नहीं, अनायास ही कितने क्लिक हुए पता नहीं । शहर के अन्दर के फॉल कलर का नजारा भी कम नहीं था ,कम नहीं इसलिए की यहाँ बहुत सी ऐसी जगहें हैं जहाँ पतझर के रंग बहुतायत हैं । आज वेसे अच्छा लगा अकेले इनकी शैर करना ..कल फिर जाउंगी इसी उम्मीद से मेने कैमरे को विराम दिया











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