Thursday, February 21, 2013

बीते दिनों की अनोखी यादें .....


1 . 

अप्पी रानी

बडी सयानी 
एक घडा में 
दो रंग पानी 

[मंझले नानाजी के शब्दों में  ]

मंझले नाना जी का वो लाड मेरे (यानी कीअप्पी ) के लिये स्म्रिती बन गयी और आज भी मैं उसे गुनगुना जाती हुं मंझले नाना जी के न होने पर भी वो पुरानी स्म्रिती ताजा हैं| उनका वो लाड और प्यार हमेशा हम दोनो भाई बहन के लिये अमूल्य हैं| वो अनेको बातें , अहले सुबह घोडे की सवारी, कच्चा दुध पिलाना, उनका पुरा व्यक्तित्व हमारे बचपन की अनोखी और खुबसुरत यादे हैं और क्यू न हो आखिर वो हमारे पहलवान नानाजी जो थे जिनका नाम हम बडे शान से अपने दोस्तो के बीच लिया करते थे । 


2 .

माँ शारदे कहा तू वीणा बजा रही हो, 

किस मंजुज्ञान में तुम जग को लुभा रही हो ।

किस भाव में भवानी तू मग्न हो रही हो,

विनती यही हमारी माँ क्यों न सुन रही हो ....

इस प्रार्थना से एक खास जुड़ाव बचपन से रहा है ,उन दिनों हम इस  गाने को लेकर काफी उत्साहित रहा करते थे ,वजह बहुत हैं , पर उनमे से दो वजहें जयादा महत्वपूर्ण हैं  ,पहला की ये वंदना माँ सरस्वती की थी जिनसे बचपन में हमेसा ये डर लगा रहता की, कहीं ये रुष्ट हो गयी तो शायद हम कही के न रहे यानि की परीक्षा में गोल -गोल लड्डू और दूसरी जो बेहद खास वजह थी ,मेरे और भैया के लिए की पड़ोस के पंडित चाचाजी हर शाम को सारे बच्चो को बुलाकर प्राथना में शामिल करते और ये सारे श्लोक याद करवाते । आज वो सब पीछे छुट गया पर वो चाचाजी और ये प्राथना आज भी माँ सरस्वती को देखकर अनायास ही याद आ जाते हैं । 

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