Sunday, February 3, 2013

सुबह की पहली किरण


सुबह  की पहली किरण 


नींद से जगाती ,अपने होने का अहशास करा जाती 

अंगराइयों के भवर में ,भीनी खुशबु छोड़  जाती

सुबह की पहली किरण ।


अपनी हथेलियों को पलकों पर रख कर, मैंने  भी महसूस किया था तुम्हे

 लाल ,हरा ,नीला ,पीला न जाने कितने रंगों को अपने में समाये 

अँधेरी रात के सारे  गिले शिकवे अपने आप में समाये फिर से नए राह दिखा जाती वो 

सुबह की पहली किरण ।


दिन ढलता जाता है ,और सुबह की पहली किरण अपने दिन के सारे  अहशास ले जाती है 

 फिर से एक नयी सुबह की शुरुआत  के लिए ।


[अपनी कलम से ]

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